कट्टरवाद vs उदारवाद

 कट्टरवाद vs उदारवाद 


कल #ऑस्ट्रिया के प्रसिद्ध शहर #वियना,  में, एक आतंकवादी ने पांच लोगों की हत्या कर दी और 17 को गंभीर रूप से घायल कर दिया। पिछले कुछ दिनों में इस प्रकार की यह तीसरी घटना है, इससे पहले #फ्रांस में इस तरह के हमले हुए थे। यहां यह बात उल्लेखनीय है कि #योरोप में #मुस्लिम_प्रवासियों का जब आगमन शुरू हुआ तो सबसे पहले स्वागत करने वाले देशों में ऑस्ट्रिया और फ्रांस का ही नाम सब अगली श्रेणी मिलता है। 


आजकल, जब भी किसी आत्मघाती हमले की सूचना मिलती है तो पूरी दुनिया में #मुसलमानों की पहली प्रतिक्रिया ये होती है कि, "ए अल्लाह, यह हमलावर कहीं मुसलमान न निकल जाए....."क्योंकि हमले के समय तो हत्यारे की असली पहचान किसी को पता नहीं होती है.. ... परंतु जैसे ही समाचारों और सरकारी पुष्टि से यह अस्पष्ट हो जाता है कि हमलावर वास्तव में एक मुसलमान है, तो ईन यूरोपीय देशों में बसे विभिन्न नस्लों और राष्ट्रो के मुसलमानों की अगली प्रार्थना होती है कि "ए अल्लाह , यह कहीं पाकिस्तानी/अफगानी/अरब/फिलिस्तीनी न हो"। ऐसा इसलिए कि पश्चिम में रहने वाले सभी मुसलमानों को सिर्फ अपनी अपनी चिंता लगी होती है। जैसे ही यह पता चलता है कि हमलावर किसी दूसरे देश का है, तो सभी मुसलमान निश्चिंत होकर खर्राटे लेने लगते हैं कि चलो हमारी तो जान छूती, अब हमारे ऊपर कोई उंगली नहीं उठाई जाएगी।


मुस्लिम समुदाय का अधिकांश हिस्सा चरमपंथी और कट्टर विचारों एवं कार्यों के ख़िलाफ़ प्रतीत होता है। और उन में से 99 प्रतिशत स्पष्ट रूप से इस प्रकार के आत्मघाती विस्फोटों/हमलों में न तो सम्मिलित होते हैं और न ऐसा करने की सोच रखते हैं ब्लकि इस की घोर निंदा करते हैं और इसे #इस्लामी_संस्कृति और सिद्धांतों के विरुद्ध मानते हैं।


लेकिन इस बार फ्रांस में हुई घटना के बाद एक नई प्रकार की सोच सामने आई है। वो ये कि जो लोग #उदारवादी_मुसलमान कहे और समझे जाते थे वो भी #चार्ली_हेब्दो के लोगों की हत्या को सही मानते हैं और विभिन्न प्रकार के तर्कों से उसे न्यायोचित ठहराते हैं। 

जो लोग इस तरह के हमलों को सही ठहराते हैं उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि उनका यह आचरण व सोच उनकी आने वाली पीढ़ियों के लिए कितना घातक सिद्ध होने वाला है?

 

हमें इस बात का अंदाज़ा क्यूँ नहीं हो रहा है कि यह दुनिया हमें किस नज़र से देखती है और आज हमारी पहचान क्या बन गई है? हम कब तक अतीत के झूठे और ग़लत ख्यालों में खोए और मस्त रहेंगे? क्या हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों के उज्जवल भविष्य के बारे में नहीं सोचना है? ... क्या हमें इस तेजी से बदलती और विकसित दुनिया का हिस्सा नहीं होना चाहिए?


यह सच है कि ये उदारवादी मुसलमान जो खुद तो इस तरह की आतंकवादी  घटनाओं का हिस्सा नहीं बनते हैं, लेकिन वे ऐसी घटनाओं के खिलाफ मुखर होकर आवाज भी नहीं उठाते हैं। अगर कोई चुटकुलों और कार्टूनों के माध्यम से इस्लाम के विरोध किसी प्रकार की टिप्पणी कर देता है तो उनकी भावनाएं बहुत आहत हो जाती हैं, परंतु उनके अपने ही मुस्लिम बहुल देशों में जब अन्य धर्मों के विरुद्ध अवहेलना एंव अवमानना का मामला सामने आता है तो ये गांधी जी के तीन बंदर बन कर न तो कुछ देखते हैं, न सुनते और नही कुछ बोलते हैं। न तो धरना-प्रदर्शन के लिए ये बैनर पोस्टर लगाते हैं और न ही कलम से इसकी निंदा करते हैं।

 

यहां पर अगर ये कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा कि इस्लाम धर्म के वास्तविक दुश्मन जितना ये आतंकवादी, चरमपंथी और कट्टर वादी लोग हैं, उस से कहीं अधिक ये उदारवादी मुसलमान भी हैं। इनको समाज में वैसे तो बड़े ही सभ्य शब्दों से याद किया जाता है कि ये लोग तो शिक्षित एवं आधुनिक मुसलमान हैं, परंतु इनकी खामोशी ने इन्हें उन आत्मघाती हमलावरों की तरह ही समाज के लिए ख़तरनाक बना दिया हैं।

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