ईरान का परमाणु भविष्य: कूटनीति या टकराव की ओर?
मस्क़त में शुरू हुई कूटनीति, रोम में तय होगा भविष्य: ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर समझौता या क्षेत्रीय तनाव की आशंका
12 अप्रैल 2025 को, मस्क़त, ओमान की राजधानी में अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु कार्यक्रम को लेकर उच्च-स्तरीय वार्ता हुई। यह 2018 के बाद दोनों देशों के बीच पहली महत्वपूर्ण बैठक थी, जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने संयुक्त व्यापक कार्य योजना (जेसीपीओए) नामी ईरान परमाणु समझौता से अमेरिका को एकतरफा रूप से वापस निकाल लिया था।[1] वार्ता मुख्य रूप से अप्रत्यक्ष थी, जिसमें ओमान के विदेश मंत्री बदर बिन हमद अल-बुसैदी ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई। हालांकि, अमेरिकी मध्य पूर्व दूत स्टीव विटकॉफ और ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने वार्ता के अंत में कुछ मिनटों के लिए ओमानी मध्यस्थ की उपस्थिति में सीधा संवाद भी किया था।[2] दोनों पक्षों ने वार्ता को "सकारात्मक", "रचनात्मक", और "सम्मानजनक" बताया और अगली बैठक के लिए 19 अप्रैल 2025 को रोम, इटली में सहमति जताई।[3]
यह वार्ता ट्रंप के दूसरे कार्यकाल (20 जनवरी 2025 से शुरू) की शुरुआत में हो रही है, जिस में उन्होंने जेसीपीओए से बेहतर समझौता करने की प्रतिबद्धता दोहराई है।[4] वार्ता का उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमित करना, क्षेत्रीय तनाव को कम करना, और संभावित सैन्य टकराव को टालना था। हालांकि, कोई ठोस समझौता नहीं हुआ, लेकिन दोनों पक्षों ने एक ढांचा तैयार करने की दिशा में प्रगति की सूचना दी है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
ईरान का परमाणु कार्यक्रम दशकों से वैश्विक कूटनीति का एक केंद्रीय मुद्दा रहा है। 2002 में नतांज़ और अराक में गुप्त परमाणु सुविधाओं का खुलासा होने के बाद, अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से अमेरिका, इजरायल, और यूरोपीय देशों ने ईरान के परमाणु हथियार विकसित करने की संभावना पर चिंता जताई।[5] ईरान ने हमेशा दावा किया है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल नागरिक उद्देश्यों, जैसे बिजली उत्पादन और चिकित्सा अनुसंधान, के लिए है। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) और पश्चिमी देशों ने इसके इरादों पर संदेह जताया है।
14 जुलाई 2015 को, ईरान और P5+1 देशों (अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस, और जर्मनी) ने वियना, ऑस्ट्रिया में संयुक्त व्यापक कार्य योजना (जेसीपीओए) पर हस्ताक्षर किए।[6] इस समझौते के तहत, ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने और आईएईए के व्यापक निरीक्षणों को स्वीकार करने का वादा किया, बदले में संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, और यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए परमाणु-संबंधी प्रतिबंधों में राहत दी गई। जेसीपीओए को वैश्विक कूटनीति में एक ऐतिहासिक उपलब्धि माना गया, जिसने ईरान के परमाणु हथियार विकसित करने की संभावना को कम किया और क्षेत्रीय तनाव को कम करने की उम्मीद जगाई।
जेसीपीओए का पतन और ट्रंप का पहला कार्यकाल
8 मई 2018 को, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने जेसीपीओए से अमेरिका को एकतरफा रूप से वापस ले लिया, यह तर्क देते हुए कि समझौता ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम और क्षेत्रीय प्रभाव को नियंत्रित करने में विफल रहा।[7] अमेरिका ने ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध दोबारा लागू किए, जिसे “अधिकतम दबाव” नीति कहा गया। इन प्रतिबंधों ने ईरान की अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया, विशेष रूप से तेल निर्यात और विदेशी मुद्रा भंडार को। जवाब में, ईरान ने 2019 से जेसीपीओए की शर्तों का उल्लंघन शुरू किया, जिसमें यूरेनियम संवर्धन की सीमा (3.67%) और स्टॉकपाइल (300 किलोग्राम) को पार करना शामिल था।[8]
ईरान का परमाणु कार्यक्रम: वर्तमान स्थिति
आईएईए की मार्च 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को काफी आगे बढ़ाया है:[9]
यूरेनियम संवर्धन: ईरान के पास 275 किलोग्राम यूरेनियम 60% शुद्धता तक संवर्धित है, जो जेसीपीओए की 3.67% सीमा से कहीं अधिक है। परमाणु हथियार के लिए 90% शुद्धता की आवश्यकता होती है, और विशेषज्ञों का अनुमान है कि ईरान कुछ हफ्तों में हथियार-ग्रेड यूरेनियम तैयार कर सकता है।
सेंट्रीफ्यूज: ईरान ने नतांज़ और फ़ोर्दो में सेंट्रीफ्यूज की संख्या हजारों में है, जिनमें उन्नत IR-6 मॉडल शामिल हैं, जो जेसीपीओए के तहत सीमित थे।
ब्रेकआउट समय: अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का अनुमान है कि ईरान को एक परमाणु बम बनाने में 12 से 18 महीने लग सकते हैं, हालांकि हथियार-ग्रेड यूरेनियम को एक सप्ताह में तैयार किया जा सकता है।[10]
2023 में, आईएईए ने फ़ोर्दो में 83.7% तक संवर्धित यूरेनियम के कणों का पता लगाया, जिसे ईरान ने “मानवीय त्रुटि” बताया। इसके जवाब में, ईरान ने फ़ोर्दो में निरीक्षणों को 50% बढ़ाने की अनुमति दी।[11]
2025 में पुनर्जनन के प्रयास: ओमान वार्ता
12 अप्रैल 2025 को, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल हुई, जब संयुक्त राज्य अमेरिका और इस्लामिक गणराज्य ईरान के बीच उच्च-स्तरीय चर्चा और वार्ताएं हुईं। ये वार्ताएं ओमान की राजधानी मस्क़त में आयोजित हुईं, जो अपनी लंबे समय से चली आ रही कूटनीतिक तटस्थता और क्षेत्रीय संघर्षों में मध्यस्थता की सक्रिय भूमिका के लिए प्रसिद्ध है।[12] यह बैठक 2018 के बाद दोनों देशों के बीच पहली महत्वपूर्ण मुलाकात थी, जो कूटनीतिक संबंधों में संभावित पुनर्संरेखण और भविष्य में सहयोग या संघर्ष समाधान की संभावना का संकेत देती है।
चर्चाओं का स्वरूप मुख्य रूप से अप्रत्यक्ष था, जिसमें ओमान के विदेश मंत्री बदर बिन हमद अल-बुसैदी ने मध्यस्थ की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी भागीदारी दोनों पक्षों के बीच संवाद को सुगम बनाने और समझौता व बातचीत के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में महत्वपूर्ण थी। विशेष रूप से, इन अप्रत्यक्ष वार्ताओं के बीच, अमेरिकी मध्य पूर्व दूत स्टीव विटकॉफ और ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची के बीच संक्षिप्त लेकिन महत्वपूर्ण संवाद हुआ। उनका यह संवाद, हालांकि अल्पकालिक था, ओमानी मध्यस्थ की उपस्थिति में हुआ, जो इन चर्चाओं की संवेदनशील प्रकृति और ऐसी नाजुक वार्ताओं में व्यक्तिगत संलग्नता के महत्व को रेखांकित करता है।[2]
दोनों प्रतिनिधिमंडलों ने वार्ताओं से उत्साह के साथ उभरते हुए, चर्चाओं को “सकारात्मक और रचनात्मक” बताया। प्रगति की इस पारस्परिक स्वीकृति से दोनों पक्षों की संवाद में शामिल होने और समान आधार खोजने की इच्छा झलकती है, जो अमेरिका-ईरान संबंधों में ऐतिहासिक तनावों को देखते हुए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, दोनों पक्षों ने 19 अप्रैल 2025 को रोम, इटली में एक अनुवर्ती बैठक के लिए पुनः मिलने पर सहमति जताई, जो निरंतर संवाद के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।[3]
ये कूटनीतिक वार्ताएं डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के साथ मेल खाती थीं, जो 20 जनवरी 2025 को शुरू हुआ था। इस अवधि के दौरान, ट्रंप ने एक संशोधित परमाणु समझौते की अपनी महत्वाकांक्षा को व्यक्त किया, जो अमेरिकी हितों के साथ अधिक निकटता से संरेखित हो, और ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं के प्रति रणनीति में बदलाव का सुझाव दिया। इन महत्वपूर्ण वार्ताओं की घोषणा 7 अप्रैल 2025 को वाशिंगटन, डी.सी. में ट्रंप और इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की मुलाकात के दौरान सार्वजनिक की गई थी।[13] इस खुलासे ने न केवल अंतरराष्ट्रीय समुदाय के कई सदस्यों को आश्चर्यचकित किया, बल्कि मध्य पूर्व में भू-राजनीति की बदलती गतिशीलता के बारे में भी चर्चाएं शुरू कर दीं, जो संबंधों में संभावित नरमी का संकेत देती हैं और क्षेत्रीय राजनीतिक परिदृश्य को नया आकार दे सकती हैं।
नेतृत्व की टिप्पणियां और राय
अमेरिका
डॉनल्ड ट्रंप: ट्रंप ने 12 अप्रैल को मियामी में एक यूएफसी इवेंट के लिए जाते समय एयर फोर्स वन पर पत्रकारों से कहा, “वार्ता ठीक चल रही है, लेकिन जब तक यह पूरा नहीं हो जाता, तब तक कुछ मायने नहीं रखता।” उन्होंने 13 अप्रैल को कहा, “हम ईरान पर जल्दी निर्णय लेंगे। मैं चाहता हूं कि ईरान एक समृद्ध और महान राष्ट्र बने, लेकिन उसे परमाणु हथियार नहीं मिलना चाहिए।” ट्रंप ने वार्ता को अपनी कूटनीतिक जीत के रूप में पेश किया, लेकिन धमकी दी कि विफलता की स्थिति में सैन्य कार्रवाई होगी, जिसमें इजरायल की अग्रणी भूमिका होगी।[14]
स्टीव विटकॉफ: अमेरिकी दूत ने वार्ता को “सकारात्मक और रचनात्मक” बताया और कहा कि ट्रंप ने उन्हें “संवाद और कूटनीति के माध्यम से मतभेदों को हल करने” का निर्देश दिया है। उन्होंने अराघची से संक्षिप्त मुलाकात को “कूटनीतिक शिष्टाचार” बताया। विटकॉफ ने X पर लिखा, “ईरान को अपना परमाणु संवर्धन और हथियारीकरण कार्यक्रम बंद करना होगा। यह दुनिया के लिए जरूरी है कि हम एक सख्त, निष्पक्ष समझौता बनाएं।”[15]
व्हाइट हाउस: व्हाइट हाउस ने एक बयान में कहा, “ये मुद्दे जटिल हैं, लेकिन विटकॉफ का सीधा संवाद एक पारस्परिक रूप से लाभकारी परिणाम की दिशा में एक कदम है।”[16]
ईरान
अब्बास अराघची: ईरानी विदेश मंत्री ने वार्ता को “उत्पादक, शांत, और सकारात्मक” बताया और कहा कि दोनों पक्ष “न्यूनतम समय में समझौता चाहते हैं।” उन्होंने 12 अप्रैल को ईरानी राज्य टेलीविजन पर कहा, “हम फलहीन वार्ता या समय बर्बाद करने में रुचि नहीं रखते। हमने अपनी स्थिति स्पष्ट की, और अगली बैठक में सामान्य ढांचे पर चर्चा होगी।” अराघची ने यह भी जोर दिया कि वार्ता “केवल परमाणु मुद्दे” पर केंद्रित है। रोम में वार्ता की पुष्टि करते हुए, उन्होंने कहा, “हम शांत और तटस्थ ढंग से बातचीत करेंगे, लेकिन संवर्धन का अधिकार गैर-परक्राम्य है।”[17]
आयतुल्ला अली खामेनेई: ईरान के सर्वोच्च नेता ने वार्ता से पहले 11 अप्रैल को अपनी वेबसाइट पर एक संपादकीय में कहा, “अमेरिका के साथ वार्ता से बहुत आशावादी नहीं होना चाहिए।” हालांकि, उन्होंने राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान की सरकार को वार्ता की अनुमति दी, लेकिन चेतावनी दी कि अमेरिका का लक्ष्य “शासन परिवर्तन” हो सकता है। 13 अप्रैल को, उन्होंने कहा, “हम न तो बहुत आशावादी होने चाहिए और न ही बहुत निराशावादी। पहला कदम अच्छा और सही ढंग से उठाया गया है।”[18]
मसूद पेज़ेश्कियान: ईरानी राष्ट्रपति ने 9 अप्रैल को एक कैबिनेट बैठक में कहा, “हम वार्ता से बचते नहीं हैं, लेकिन अमेरिका द्वारा वादों का उल्लंघन हमारी समस्याओं का कारण रहा है।” उन्होंने परमाणु कार्यक्रम को “राष्ट्रीय हित” बताया और कहा कि ईरान इसे पूरी तरह नहीं छोड़ेगा।[19]
एस्माइल बघाई: ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने X पर लिखा, “यह केवल शुरुआत है। दोनों पक्षों ने अपनी मूलभूत स्थिति ओमानी मध्यस्थ के माध्यम से प्रस्तुत की। हम अमेरिका की गंभीरता का आकलन करेंगे।” उन्होंने यह भी कहा, “जब तक दबाव और धमकियों की भाषा जारी रहेगी, प्रत्यक्ष वार्ता नहीं होगी।”[20]
वैश्विक और क्षेत्रीय प्रतिक्रियाएं
अरब दुनिया:
सऊदी अरब (केएसए): सऊदी अरब अन्य खाड़ी देशों की तरह ईरान के परमाणु प्रोग्रम और क्षेत्रीय प्रभाव से हमेशा चिंतित रह है। प्रन्तु सऊदी अरब ने भि वार्ता का स्वागत किया है, जो 2015 के जेसीपीओए का विरोध करने की उनकी पिछली स्थिति से एक बदलाव है। सऊदी विदेश मंत्रालय ने 12 अप्रैल को X पर एक बयान में कहा, “हम ओमान द्वारा ईरान और अमेरिका के बीच वार्ता की मेजबानी की सराहना करते हैं।” यह रुख सऊदी अरब की हाल की कूटनीतिक प्राथमिकताओं को दर्शाता है, जिसमें क्षेत्रीय स्थिरता और ईरान के साथ तनाव कम करना शामिल है, जैसा कि 2023 में चीन की मध्यस्थता वाले सऊदी-ईरान समझौते में देखा गया।[21] हालांकि, सऊदी अरब ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम और प्रॉक्सी समूहों (जैसे यमन में हौथी) पर नियंत्रण की मांग करता है, जो जेसीपीओए में शामिल नहीं था।
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई): यूएई ने आधिकारिक तौर पर कोई बयान जारी नहीं किया, लेकिन एक ओमानी स्रोत ने Reuters को बताया कि यूएई ने ट्रंप का एक पत्र खामेनेई को भेजने में मदद की थी, जिसमें वार्ता का प्रस्ताव था। यह यूएई की मध्यस्थ भूमिका को दर्शाता है।[22]
कतर और कुवैत: दोनों देशों ने वार्ता पर सतर्क आशावाद व्यक्त किया, लेकिन चेतावनी दी कि सैन्य टकराव से क्षेत्रीय तेल आपूर्ति और स्थिरता को खतरा होगा। कतर, जहां अमेरिका का अल उदीद एयरबेस है, ने विशेष रूप से क्षेत्रीय युद्ध से बचने की आवश्यकता पर जोर दिया।[23]
इजरायल:
बेंजामिन नेतन्याहू: इजरायल, जो ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है, ने वार्ता की घोषणा पर आश्चर्य और चिंता व्यक्त की। इजरायल इस मामले में लीबिया मॉडल लागू करना चाहता है, जिसमें लीबिया के नेता मुअम्मर गद्दाफी ने 2003 में अंतरराष्ट्रीय दबाव और कूटनीतिक वार्ताओं के बाद अपना परमाणु और रासायनिक हथियार कार्यक्रम पूरी तरह से छोड़ दिया था। इस मॉडल में लीबिया ने अपनी परमाणु सुविधाओं को नष्ट किया, उपकरणों को अंतरराष्ट्रीय निगरानी में हटाया, और पश्चिमी देशों को सत्यापन के लिए पूर्ण पहुंच प्रदान की, जिसके बदले में प्रतिबंध हटाए गए।[24] 7 अप्रैल 2025 को वाशिंगटन में ट्रंप के साथ बैठक के बाद, नेतन्याहू ने 8 अप्रैल को एक वीडियो बयान में कहा, “हम और ट्रंप इस बात पर सहमत हैं कि ईरान को परमाणु हथियार नहीं मिलना चाहिए। एकमात्र स्वीकार्य समझौता वह होगा जिसमें ईरान की परमाणु सुविधाएं नष्ट हों, अमेरिकी निगरानी और कार्यान्वयन के तहत, जैसा कि लीबिया मॉडल में हुआ था।”[25] उन्होंने 13 अप्रैल को अपने सुरक्षा मंत्रिमंडल को बताया कि वह ट्रंप प्रशासन के साथ पूर्ण समन्वय करेंगे, लेकिन सैन्य समाधान को प्राथमिकता देते हैं।
ईरान का लीबिया मॉडल को अस्वीकार करना: ईरान ने लीबिया मॉडल को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया है, इसे अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय गौरव के लिए खतरा मानते हुए। ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता एस्माइल बघाई ने 14 अप्रैल को X पर लिखा, “लीबिया मॉडल एक अपमानजनक प्रस्ताव है। हम अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों और राष्ट्रीय सम्मान को नहीं छोड़ेंगे।” ईरान इसे अस्वीकार करता है क्योंकि लीबिया मॉडल में गद्दाफी ने परमाणु कार्यक्रम छोड़ने के बाद भी 2011 में पश्चिमी समर्थन से विद्रोह का सामना किया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु और लीबिया में अस्थिरता आई।[26] ईरान का मानना है कि इस तरह का पूर्ण आत्मसमर्पण उसे कमजोर करेगा और शासन परिवर्तन के लिए पश्चिमी हस्तक्षेप को आमंत्रित करेगा। इसके बजाय, ईरान एक ऐसे समझौते की मांग करता है जो उसकी संवर्धन क्षमता को बनाए रखे और प्रतिबंधों में राहत प्रदान करे, जैसा कि जेसीपीओए में था।
इजरायली रुख: इजरायल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है और “बिगिन सिद्धांत” का पालन करता है, जो संभावित शत्रुओं की हथियार क्षमता को नष्ट करने के लिए निवारक हमलों को मंजूरी देता है। इजरायल ने हाल के वर्षों में सीरिया और लेबनान में ईरान समर्थित ठिकानों पर हमले किए हैं और 2024 में ईरान की हवाई रक्षा प्रणालियों को नुकसान पहुंचाया है। नेतन्याहू ने 15 अप्रैल को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “हम ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने की अनुमति नहीं देंगे, चाहे वह कूटनीति हो या सैन्य कार्रवाई।”[27]
अन्य वैश्विक प्रतिक्रियाएं:
यूरोपीय संघ (ईयू): ईयू के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल ने 13 अप्रैल को कहा, “हम ओमान में वार्ता का स्वागत करते हैं और उम्मीद करते हैं कि यह जेसीपीओए के पुनर्जनन की ओर ले जाएगा।” यूरोप ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए कूटनीति को प्राथमिकता देता है।[28]
रूस: रूस के वियना में अंतरराष्ट्रीय संगठनों के राजदूत मिखाइल उल्यानोव ने वार्ता के बाद दोनों पक्षों के बयानों को “प्रोत्साहनजनक” बताया। रूस, जो जेसीपीओए का हिस्सा था, चाहता है कि समझौता बहाल हो, लेकिन अमेरिका के एकतरफा प्रतिबंधों की आलोचना करता है।[29]
चीन: चीन ने वार्ता का समर्थन किया और बीजिंग में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने 14 अप्रैल को कहा, “कूटनीति एकमात्र रास्ता है। सभी पक्षों को संयम बरतना चाहिए।” चीन ने ईरान के साथ अपने आर्थिक संबंधों को बनाए रखा है और प्रतिबंधों को हटाने का समर्थन करता है।[30]
संयुक्त राष्ट्र: यूएन परमाणु निगरानी प्रमुख राफेल ग्रॉसी ने 14 अप्रैल को घोषणा की कि वह ईरान का दौरा करेंगे ताकि निरीक्षकों की पहुंच में सुधार पर चर्चा की जा सके।[31]
सैन्य कार्रवाई की संभावना
अमेरिका और इजरायल दोनों के पास ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला करने की सैन्य क्षमता है, लेकिन यह एक अत्यंत जटिल और जोखिम भरा अभियान होगा। ईरान की प्रमुख सुविधाएं, जैसे फ़ोर्दो, गहरे भूमिगत बनी हैं, जिन्हें नष्ट करने के लिए GBU-57 मैसिव ऑर्डनेंस पेनेट्रेटर जैसे बंकर-बस्टिंग बमों की आवश्यकता होगी, जो केवल अमेरिका के पास हैं। इजरायल के पास ऐसी क्षमता होने की पुष्टि नहीं है।[32]
यदि हमला होता है, तो ईरान जवाबी कार्रवाई कर सकता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:
अमेरिकी ठिकानों पर हमले: ईरान कतर में अल उदीद एयरबेस या बहरीन में अमेरिकी नौसैनिक अड्डों को निशाना बना सकता है।
इजरायल पर मिसाइल हमले: ईरान या इसके प्रॉक्सी समूह, जैसे लेबनान में हिजबुल्लाह, इजरायल पर बैलिस्टिक मिसाइल हमले कर सकते हैं।
तेल आपूर्ति में व्यवधान: ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर सकता है, जो वैश्विक तेल आपूर्ति का 20% हिस्सा है।[33]
ऐसे अभियान के लिए अमेरिका को खाड़ी क्षेत्र में अपने नौसैनिक विमानवाहक पोतों (जैसे यूएसएस आइजनहावर) और क्षेत्रीय ठिकानों का उपयोग करना होगा। हालांकि, कतर और सऊदी अरब जैसे सहयोगी देश ईरान के जवाबी हमलों के डर से पूर्ण समर्थन देने में हिचक सकते हैं।
कूटनीतिक चुनौतियां और भविष्य की संभावनाएं
ओमान में वार्ता जेसीपीओए को पुनर्जनन या एक नए समझौते की दिशा में एक कदम हो सकती है, लेकिन कई चुनौतियां हैं:
विश्वास की कमी: अमेरिका और ईरान के बीच गहरी अविश्वास की स्थिति है। ईरान को डर है कि अमेरिका शासन परिवर्तन चाहता है, जबकि अमेरिका को ईरान की क्षेत्रीय गतिविधियों पर भरोसा नहीं है।
ट्रंप की मांगें: ट्रंप ने एक ऐसे समझौते की मांग की है जो ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह खत्म कर दे, जो ईरान के लिए अस्वीकार्य है। ईरान का कहना है कि वह अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित कर सकता है, लेकिन इसे पूरी तरह खत्म नहीं करेगा।[4]
इजरायल का दबाव: नेतन्याहू और इजरायल की सख्त रुख ट्रंप पर दबाव डाल सकता है कि वह कोई समझौता तभी स्वीकार करें जब ईरान पूर्ण आत्मसमर्पण करे।[25]
क्षेत्रीय गतिशीलता: हाल के वर्षों में, इजरायल ने सीरिया और लेबनान में ईरान समर्थित ठिकानों पर हमले किए हैं, और 2024 में सीरिया में बशर अल-असद सरकार का पतन ईरान की क्षेत्रीय शक्ति को कमजोर कर चुका है। यह ईरान को वार्ता के लिए प्रेरित कर सकता है, लेकिन साथ ही उसके कट्टरपंथी नेताओं को और सख्त रुख अपनाने के लिए उकसा सकता है।[34]
तकनीकी और कानूनी पहलू
जेसीपीओए के तहत, ईरान को निम्नलिखित प्रतिबद्धताओं का पालन करना था:
• यूरेनियम को 3.67% तक संवर्धित करना, जो नागरिक परमाणु ऊर्जा के लिए पर्याप्त है।
• 300 किलोग्राम से अधिक संवर्धित यूरेनियम का स्टॉकपाइल नहीं रखना।
• नतांज़ में केवल 5,060 पुराने सेंट्रीफ्यूज (IR-1) का उपयोग करना।
• आईएईए को अपनी सुविधाओं तक व्यापक पहुंच प्रदान करना, जिसमें अतिरिक्त प्रोटोकॉल के तहत 24 दिनों के भीतर किसी भी संदिग्ध साइट का निरीक्षण शामिल था।[6]
हालांकि, 2019 के बाद, ईरान ने इन प्रतिबंधों को धीरे-धीरे हटा लिया। 2023 तक, ईरान के पास जेसीपीओए की सीमा से 20 गुना अधिक संवर्धित यूरेनियम था, और उसने आईएईए निरीक्षकों की पहुंच को सीमित कर दिया।[8]
कानूनी रूप से, जेसीपीओए एक राजनीतिक समझौता था, न कि कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि। पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने 2015 में कहा था कि यह समझौता कार्यान्वयन क्षमता पर आधारित है, लेकिन भविष्य के राष्ट्रपति इसे रद्द कर सकते हैं।[35]
अगली बैठक: तारीख, स्थान, और संभावनाएं
तारीख और स्थान: दोनों पक्षों ने अगली बैठक के लिए 19 अप्रैल 2025 को रोम, इटली में सहमति जताई है। शुरू में स्थान को लेकर असमंजस था, क्योंकि ईरान ने मंगलवार को यह दावा किया था कि वार्ता फिर से ओमान में होगी। हालांकि, बुधवार 16 अप्रैल को ईरानी राज्य टेलीविजन ने पुष्टि की कि वार्ता रोम में होगी, जिसमें ओमान मध्यस्थता जारी रखेगा। इटली के विदेश मंत्री एंटोनियो ताजानी ने भी पुष्टि की कि रोम ने ओमान के अनुरोध पर वार्ता की मेजबानी के लिए सहमति दी है।[36]
रोम में बैठक का दायरा और संभावनाएं: रोम में होने वाली बैठक का दायरा व्यापक होगा, जिसमें ईरान के परमाणु कार्यक्रम की सीमाएं, यूरेनियम संवर्धन स्तर, स्टॉकपाइल की मात्रा, और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) द्वारा सत्यापन तंत्र शामिल होंगे। अमेरिका जेसीपीओए से परे एक समझौता चाहता है, जिसमें ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम और क्षेत्रीय प्रॉक्सी समूहों (जैसे हिजबुल्लाह और हौथी) पर नियंत्रण शामिल हो। ईरान, दूसरी ओर, प्रतिबंधों में राहत और अपनी संवर्धन क्षमता को बनाए रखने पर जोर देता है, यह दावा करते हुए कि उसका कार्यक्रम शांतिपूर्ण है।[37] संभावनाएं सकारात्मक हैं, क्योंकि दोनों पक्षों ने रचनात्मक संवाद की इच्छा दिखाई है, और ओमान की मध्यस्थता विश्वास निर्माण में मदद कर रही है। हालांकि, ट्रंप की मांग कि ईरान अपनी परमाणु सुविधाओं को पूरी तरह नष्ट कर दे, और इजरायल का सैन्य कार्रवाई का दबाव, समझौते को जटिल बना सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि एक अंतरिम समझौता, जैसे 60% संवर्धित यूरेनियम के स्टॉक को कम करना और प्रतिबंधों में आंशिक राहत, संभव है, लेकिन दीर्घकालिक समझौते के लिए गहन कूटनीति की आवश्यकता होगी।[38] रोम में प्रत्यक्ष वार्ता की संभावना, जैसा कि अमेरिका चाहता है, एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, हालांकि ईरान अभी भी अप्रत्यक्ष प्रारूप को प्राथमिकता देता है।
संभावनाएं
सकारात्मक परिदृश्य: यदि दोनों पक्ष एक ढांचे पर सहमत होते हैं, तो यह जेसीपीओए के पुनर्जनन या एक नए समझौते की ओर ले जा सकता है। ईरान प्रतिबंधों में राहत चाहता है, जबकि अमेरिका परमाणु कार्यक्रम पर सख्त सीमाएं और क्षेत्रीय मुद्दों (जैसे बैलिस्टिक मिसाइल और प्रॉक्सी समूह) को शामिल करना चाहता है। ओमान वार्ता में प्रारंभिक प्रगति, जैसे स्थिति पत्रों का आदान-प्रदान, एक समझौते की संभावना को बढ़ाता है।[39]
चुनौतियां: ट्रंप की मांग कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह खत्म कर दे, और ईरान का यह दावा कि वह केवल सीमित करने को तैयार है, वार्ता को जटिल बनाता है। इजरायल और अमेरिकी हार्डलाइनर्स का दबाव, साथ ही ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला अली खामेनेई की अमेरिका के प्रति अविश्वास की नीति, समझौते को कठिन बनाती है।[40]
समय सीमा: ट्रंप ने ईरान को दो महीने की अनौपचारिक समय सीमा दी है, जिसके बाद सैन्य कार्रवाई की धमकी दी गई है। अक्टूबर 2025 में जेसीपीओए की “सनसेट क्लॉज” समाप्त होने से पहले एक समझौता महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि इसके बाद यूएन प्रतिबंध स्वतः बहाल हो सकते हैं।[41]
निष्कर्ष
12 अप्रैल 2025 को मस्क़त, ओमान में हुई अमेरिका-ईरान वार्ता एक सकारात्मक शुरुआत है, लेकिन यह एक लंबी और जटिल प्रक्रिया का पहला कदम मात्र है। ट्रंप की सख्त नीति, इजरायल की शून्य-सहिष्णुता की मांग, और ईरान की अपनी संप्रभुता की रक्षा करने की इच्छा ने स्थिति को जटिल बना दिया है। यदि कूटनीति विफल होती है, तो सैन्य कार्रवाई का जोखिम बढ़ सकता है, जिसके परिणाम क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए विनाशकारी हो सकते हैं। दूसरी ओर, एक नया समझौता, जो दोनों पक्षों के लिए स्वीकार्य हो, मध्य पूर्व में तनाव को कम कर सकता है और परमाणु प्रसार को रोकने में मदद कर सकता है। 19 अप्रैल 2025 की अगली बैठक एक ढांचे को अंतिम रूप देने की दिशा में अगला महत्वपूर्ण कदम होगी। सऊदी अरब और अरब दुनिया का सतर्क समर्थन, साथ ही यूरोप, रूस, और चीन का कूटनीति पर जोर, इस प्रक्रिया को वैश्विक महत्व देता है। कूटनीति की सफलता या विफलता मध्य पूर्व और वैश्विक स्थिरता के लिए निर्णायक होगी।
संदर्भ
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