प्राकृत वायरस vs स्वार्थवाद का कीड़ा
प्राकृत वायरस vs स्वार्थवाद का कीड़ा
~आसिफ़ नवाज़
आमतौर पर जब भी मनुष्य के जीवन में कठिन समय आता है तो वह गंभीर अवसाद (depression) से पीड़ित हो जाता है। उदाहरण के तौर पर जब किसी का कोई प्रियजन क़रीबी इस दुनिया से प्रस्थान कर जाए, या किसी को गंभीर वित्तीय हानि हो जाए, या किसी को कोई बहोत घातक बीमारी निदान (diagnose) की गई हो, या ऐसे ही किसी का वैवाहिक जीवन गंभीर समस्याओं से ग्रस्त हो गया हो। आदि आदि ... परंतु इन सब समस्याओं में एक मनुष्य अकेले डिप्रेशन का शिकार होता है, जबकि बाकी दुनिया सामान्य चल रही होती है। सभी मुस्कुराते हुए प्रतीत होते हैं। आप को ऐसा लगता है कि केवल आप इस दुनिया में अकेले मनुष्य हैं जो इस गंभीर समस्या से दो चार हैं और पूरी तरह से टूट चुके हैं। इस समय दूसरों की खुशी और हंसी आपको और अधिक उदास कर रही होती है। क्योंकि न तो कोई आप के दुख को समझना और साझा करना चाहता है और न ही किसी के पास इसके लिए समय है। इस प्रस्थिति में जो आप के साथ सहानुभूति भी रखता हुआ दिखता है वो आप को खोखला और बनावटी लगता है।
परंतु आज के इस #कारोना जैसी #महामारी से जूझ रही दुनिया में पूरी मानवजाति एक भयानक उदासी वाले डिप्रेशन (melancholic depression) से ग्रस्त है। पूरा संसार एक समान महसूस कर रहा है। मानो पूरी दुनिया ठहर सी गई हो। इस समय सभी की भावनाएँ एक जैसी हैं, क्यूँकी सभी इस संकट से बाहर निकलने की व्यवस्था ढूढ़ रहे हैं। मेरी इस बात का विश्वास करें कि यदि आप इस समय भारत के सबसे गरीब आदमी हैं तो भी आप की और प्रधान मंत्री श्री नरेंद मोदी की भावनाएं एक समान है। हर किसी को जीवन के इस युद्ध को जीतना है। इस समय यदि आप वित्तीय समस्यायें से प्रभावित हैं, आप का व्यापार नीचे चला गया है, नौकरी से हाथ धो बैठे हैं, तब भी ये सब समस्याएं आप के लिए माध्यमिक श्रेणी की हैं। शेयर बाजार और स्टाक मार्केट चाहे जितना नीचे चला गया हो, ये सभी मुद्दे इस समय बेकार और अनावश्यक लगते हैं। क्यूँकी फिलहाल, हर कोई #कोरोना की लड़ाई जीतने की कोशिश कर रहा है।
मानव जाति के पूरे एतिहासिक सफ़र में ऐसा पहली बार हो रही है जिस में हमें ये देखने को मिलने लगा है कि 'महमूद और अयाज़' (राजा और प्रजा) दोनों एक ही पंक्ति में खड़े नज़र आ रहे हैं। - सभी की भावनाएँ, चिंताएं, रुचि एक समान हो गई हैं। यह पहली बार हो रहा है जब पूरे मानव संसार का एक ही मुद्दा है। हमारे बढ़े बुढ़े यह बता रहे हैं कि यह पहला अवसर है जिस में दुनिया रंग, नस्ल, प्रांत, भूगोल, जाति और धर्म की परवाह किए बिना अलग तरह से सोचने पर मजबूर हुई है। यह इतिहास में पहली बार हो रही है जब पूरी दुनिया एक ऐसे शत्रु से भयभीत हो रही जो 'अदृश्य' है। यह पहली बार हो रहा है जब पूरी दुनिया अपने किसी साझा हित (common cause) के लिए एकजुट होती दिख रही है।
यदि #क्रोना_वायरस का संकट लंबे समय तक चलता है, - ईश्वर न करे! ऐसा न हो! - तो इस बात की दृढ़ सम्भावनायें हैं कि यह महामारी मानवीय सोच के सभी धारों को आने वाले समय में पूरी तरह बदल कर रख देगी। विश्व राजनीति, भूराजनीति और और राष्ट्रीय हित के सभी परिप्रेक्ष्य (prospevtive) बदल जाएं गे। लेकिन ऐसा होने की संभावनाएं बहुत कम दृश्य हो रही हैं, क्योंकि इस वायरस से उत्पन होने वाला संकट तो बस कुछ महीनों का खेल लगता है। और फिर इस के बाद दुनिया वापस अपने नियमित ढब पे चलने लग जाए गी। क्यूँकी प्राकृत वायरस के प्रकोप के समाप्त होने का अर्थ ये बिल्कुल नहीं है कि मनुष्य अपने मन में स्वार्थवाद का जो कीड़ा विकसित कर चुका है, उस से उसको छुटकारा मिले। इस समय जो विश्व राजनीति का चलन है उसमें पैसा और स्वार्थवाद सब से प्रमुख स्थान ग्रहण किये हुए। सारे नीतिशास्त्र, नैतिकता और सिद्धांत को परे रखते हुए दुनिया एक बार फिर पैसा बनाने में लग जाए गी। आपस में लड़ना और दूसरों को लड़ा कर ही दुनिया का व्यापार चलता है।
#आसिफ़_नवाज़
#जामिया_मिल्लिया_ईसलामिया
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